Wednesday, October 7, 2009

Press Statement

Revolutionary Democratic Front (RDF)

All India Committee

Press Release

6 October 2009

Raja Sarkhel, all Indian Executive Committee member of Revolutionary Democratic Front (RDF) and Secretary of the West Bengal State unit and Prasun Chatterjjee, Executive member of state unit (Gana Pratirodh Manch) have been arrested by West Bengal police on the evening of 5th October in Kolkata and implicated them in fabricated cases under the Unlawful Activities (Amendment) Act 2008 by showing false links with CPI (Maoist). The West Bengal police have claimed sources of information regarding the supposed links of these senior people’s activists with CPI (Maoist) based on false and fabricated confessions supposedly obtained from Chatradhar Mahoto, the spokesperson of People’s Committee Against Police Atrocities, who was illegally and immorally arrested and continuously tortured under illegal police custody.

Raja Sarkhel is a committed people’s activist for the last three decades in West Bengal and is well-known to the people of the state working for various mass movements including Singur, Nandigram and Lalgarh in the recent years. Prasun Chatterjjee has been actively working for the people’s cause for more than a decade. While Raja Sarkhel was picked up from a street while he was returning home, Prasun Chatterjjee was whisked away by the police from his residence when he was taking rest after his eyes were treated in a hospital.

The arrest of these two well-known activists of our organisation has come in the background of a vicious campaign orchestrated against the progressive and democratic intellectuals in Kolkata by the ruling CPI (M) leaders, the Chief Secretary, Asok Mohan Chakrabarti, the Home Secretary, and Mr Ardhendu Sen along with a number of police officials. Like Dr Binayak Sen who was incarcerated in Chhattisgarh by the right-wing communal BJP government for more than 2 years for bringing out the facts to the world outside the worst kind of atrocities committed on the tribals by Salwa Judum, a state-run armed mercenaries, these two selfless people’s leaders tirelessly brought out all the details of the people’s movement of Singur, Nandigram and Lalgarh including the worst atrocities committed against the struggling people by the CPI(M) armed goons and the police and paramilitary forces. This is the crime they committed.

The RDF calls upon the people of this country to defeat CPI (M)’s fascistic witch-hunt of progressive and democratic writers, artists, intellectuals and activists of Kolkata by raising voice of protest collectively. It’s time for all the democratic voices to come together firmly against the fascistic onslaught of the Indian ruling classes represented in the Union government or the state governments like that of CPI (M) led left front government or BJP Government in Chhattisgarh on the revolutionary and democratic struggles in South Asia.

Revolutionary Democratic Front demands immediate and unconditional release of Raja Sarkhel and Prasun Chatterjee by withdrawing the fabricated charges under UAPA act.

Rajkoshore

General Secretay

Wednesday, July 1, 2009

अपील

तमाम प्रगतिशील, बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों, साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों, सामाजिक कार्यकत्र्ताओं, मानवाधिकार संगठनों, जनसंगठनों, प्रबुद्ध नागरिकों, मजदूर-किसानों, छात्र नौजवानों तथा शुभ चिन्तकों के पास हमारी अपील
मित्रों,
अस्सी के दशक में मैं एक गरीब किसान परिवार में जन्मा हूं। गिरिडीह के पीरटांड़ थाना अन्तर्गत सुदूर देहाती क्षेत्र में है। हमारा गांव में मात्र छिट-पुट सरकारी सुविधायें हैं। जीवोकापार्जन है खेती-बाड़ी एंव कठोर मेहनत पर निर्भरता। बचपन की जिन्दगी उस गांव में केवल जैसे तैसे गुजरी। परिवार में कोई भी पढ़े-लिखे नहीं। गरीबी के चलते घर चलाने का जिम्मा सभी परिवार के कन्धों पर पड़ा। किशोरवस्था के बीच गाय-बकरी चराना मेरी मूल जिम्मेदारी बनी। दुनिया से कोई मतलब नहीं। इसीलिए कलम काॅपी के जगह हाथ में डंडा। गाय-बकरी की गिनती के लिए भी पत्थर का सहारा लेना। सुबह होने पर शाम का इन्तजार और शाम होने पर सुबह होने का इन्तजार करते उम्र गुजरी। किसी तरह समय निकाल कर तीसरा क्लास तक ही मुझे पढ़ने का मौका मिला। यही मेरा ज्ञान की पूंजी है।
एक समय आया, मेरी नजर खुल। जब मैंने देखा, दुनिया बहुत विशाल है। समाज व्यवस्था की गहराई को आंकना चाहा। मैंने देखा मौजूदा सड़ी-गली व्यवस्था को। अपनी जीवन के अनुभव को समझा। उड़ते विचारों को हवा लगी। दृष्टि ज्ञान की गवाह बनी। औरों के साथ व्यवस्था परिवर्तन करने की सोच जगी। इच्छा बढी। लम्बे लक्ष्यों के सथ परिवर्तन की इच्छाशक्ति का विकास हुआ। सबसे पहले अपने उम्र के बच्चों की जागरूकता के लिए व्यवहार व सुधारों का कार्यक्रम चलाया। बुरा मत बोलो, बुरा मत करना, बुरा को बुरा ही कहो, बुरा को भला में बदलो, बुरा को पहचानो, सुन्दर एवं समानता की सामाजिक व्यवस्था बनाओ। जागरूकता फैलाने के लिये गीत-नाटकों, एवं नाच-गान (लोक नृत्य) का शुरूआत किया। गांव में जागरूकता बढ़ी। लोग जागे, समाज बदलता नजर आया। हमारी लोकप्रियता बढ़ी। जनता में चेतना आयी आदिवासियों की परम्परा व लोक संस्कृति की रक्षा करते हुए इसे विकसित करने की। जनता की कतार खड़ी हुई। आम जनता की पूर्ण सहमति से जन संस्कृति का निर्माण करने हेतु कार्यक्रम बढ़ा। कार्यक्रम के दौरान जन-चेतना का विकास हुआ। इन कार्यक्रमों ने हमारी मानसिकता का अपेक्षाकृत विकास किया।
गांवों से शहरों की ओर पांव बढ़े, सिर्फ जनता के सहारे सही राहों पर पांव बढ़े। व्यवस्था परिवर्तनकारी रही मिले। फूल-माला की तरह भावनाएं मिली। पथ मिला, लक्ष्य मिला, दृष्टि बनी। वक्त के साथ जीवन ढलता गया। दृष्टि ही ज्ञान का स्रोत बना। ऐसी स्थिति में इस कार्य हेतु हजारों-लाखों जनता का मुझे प्यार मिला। साथ ही बुद्धिजीवियों, लेखकों, साहित्यकारों, कलाकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रबुद्ध नागरिकों, मानवाधिकार संगठनों, जन संगठनों आदि का मुझे भरपूर प्रोत्साहन मिला। केवल प्रोत्साहन ही नहीं बल्कि समय-समय पर उचित मार्गदर्शन भी मिला। इसके लिए आज तक हमसे मिले सभी जनता एंव शुभ चिन्तक धन्यवाद के पात्र हैं।
जिसने भी मुझे जाना लोक कलाकार के रूप में, सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में, परिवर्तनकारी के रूप में जन चेतना जगाने हेतु प्रचारक के रूप में। यह सच भी है। सिने भी मुझे देखा हथियार, गोला-बारूद एव बम पिस्तौल के साथ नहीं बल्कि ढोलक, नगाड़ा, मांदल, बांसुरी, कैसियो, हारमुनिया एवं धोती-गंजी घुंघरू के खास पोशाक के साथ। एक हुजूम के साथ, बाल-बालिका कलाकारों के साथ। गांव से शहरों तक बेहिचक जन गीत गाते हुए एवं अपनी लोक कलाओं को बिखरते हुए ही लोगों ने मुझे देखा है। बचपन से लेकर आज तक गांव हो या शहर जीतन मरांडी नाम कभी नहीं छुपाया हूं। आवाज एवं कला ही हमारा सब कुछ है। जन जागरूकता के लिए कभी भी हमने बल का प्रयोग नहीं किया है। सिर्फ आवाज एवं कला को ही अपना मुख्य हथियार बनया है। आॅडियो-कैसेटों का भी जीतन मरांडी के नाम से निर्माण हो चुका है। सिर्फ आवाज एवं कला को ही अपना मुख्य हथियार बनया है। आॅडियो कैसेटों का भी जीतन मरांडी के नाम से निर्माण हो चुका है जिसमें हमारी आवाज में खोरठा, संथाली, नागपुरी एवं हिन्दी गीत समाहित है। अश्लील नहीं बल्कि सामाजिक गीत हैं। कैसेटों की बिक्री गांव एवं शहरों तक हुई। जनगीत बने। केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि वो प्ररेणा का स्रोत भी बने। कहीं से कोई विरोध नहीं, बल्कि जागरूक तबके की प्रशंसा हमें प्राप्त हुई। आज तक गांधी जी बनकर रहने के बावजूद आज मैं जेल में हूं। आज सभी के अन्दर सवाल उठता ही होगा कि आखिर जेल में क्यों ? क्या कसूर हैं जीतन मरांडी का ?
मैं साजिश का शिकार हूं
एक साल से मंडल कार, गिरिडीह में बंद हूं। मेरे ऊपर लगाए गए तमाम आरोप भी संगीन हैं। दिन-प्रतिदिन नई-नई घटनाएं भी मेरे साथ घटते रहती हैं। धीरे-धीरे गिरिडीह पुलिस प्रशासन की साजिश भी उजगार होती जा रही है। एक बात बता दूं कि जनता तो मुझे अच्छी तरह से जानती है कि मैं क्या हूं, साथ ही पुलिस प्रशासन भी मुझे अच्छी तरह से जानती है कि मैं क्या हूं। इसके बावजूद मैं साजिश का शिकार बना हूं। गिरिडीह पुलिस एवं राजनीतिक नेताओं का गठबंधन सामने आ चुका है। खास करके पुलिस एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के नेतृत्वकारी झाविमो की मिलीभगत से मेरे ऊपर सब कुछ हो रहा है। एक तरफ जहां बाबूलाल मरांडी भ्रष्टाचार एवं भय मुक्त राज्य की स्थापना के लिए हुंकार कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हमारे जैसे निर्दोष व्यक्तियों के साथ पुलिस की मिली भगत से दमन चलाव रहे हैं। जिसका जीता जगता मिसाल आगे पेश किया जा रहा है।
जरा गौर किया जाय। चिलखारी नरसंहार के बाद देवरी थाना कांड संख्या 167/07 के तहत प्राथमिकी दर्ज हुई। साथ ही न्यायिक दण्डाधिकारी के सामने 164 का बयान भी दर्ज किया गया था। इसमें कई नामों के साथ केवल एक जीतन का नाम आया था। कौन है, कहां का है विवरण कुछ नहीं। आश्चर्यजनक ढंग से प्रभात खबर में मेरे फोटो के साथ नाम एवं विवरण सहित बड़ी खबर बनायी गई थी। खबर में उस नरसंहार का मुख्य अभियुक्त मुझको बनाया गया था। खबर देखने के बाद मैंने उसकी कड़े शब्दों में निन्दा की थी। खबर का खंडन भी छपा था। इस खबर को सम्पादक ने बड़ी गलती के रूप में स्वीकारा था। पुलिस प्रशासन के उच्चाधिकारीगण की प्रतिक्रिया आयी की ये जीतन मरांडी नहीं हैं। वास्तविक तस्वीर सामने आने के बाद मैंने राहत की सांस ली।
अचानक पांच महीने के बाद दिनांक 5 अप्रैल, 08 को रांची रातु रोड से सादा पोशाकधारी पुलिस ने मुझे पकड़ा। गुप्त स्थानों में रखकर पूछताछ की गई। चिलखारी के मामले में उन्हें कुछ नहीं मिला। बाद में पलिस ने मुझको बातया की तत्कालीन मुख्यमंत्री आवास के सामने विगत 1 अक्टूबर 07 को प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ भाषण एवं रोड जाम के आरोप में प्राथमिकी दर्ज है। उसके तहत ही तुमको जेल भेजा जा रहा है। इसके बाद बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारा, होटवार, रांची में मुझे भेज दिया गया।
दिनांक 12 अप्रैल 08 को देवरी थाना कांड संख्या 167/07 के तहत देवरी पुलिस ने वहां से रिमांड किया। और न्यायिक हिरासत में मंडल कारा, गिरिडीह मुझको भेज दिया गया। 17 अप्रैल 08 को 10 दिनों के लिए पुलिस अभिरक्षा में ले गई। उस बीच जो भी पुलिस अफसर मुझसे पुछताछ किये मेंने साफ शब्दों में बता दिया की मैं जीतन मरांडी जरूर हूं लेकिन नरंसहार को अंजाम देने वाला जीतन मरांडी नहीं हूं। पुलिस के उच्चाधिकारी ने भी मान लिया था। रिमांड के अवधि में मेेरे साथ बहुत कुछ हुआ मगर नहीं लिख रहा हूं। पुलिस डायरी में पुलिस ने यह विवरण कहीं नहीं दर्शाया है कि मैंने रिमांड की अवधि में क्या बताया है। डायरी मंे तीन और गवाहों को जोड़ा गया है। गवाहों के बयान को आधार बनाते हुए लिखा गया है कि दोनों जितन मरांडी घटना में शामिल थे। विवरण में बताया गया है कि एक जीतन मरांडी निमियाघाट थाना के ठेसाफुुली गांव के हैं और दूसरा जीतन मरांडी पीरटांड़ के करन्दों गांव के रहने वाले हैं जो झारखण्ड एभेन को भी चलाता है। एक और महत्वपूर्ण पहलू पर गौर करने की बात है कि मारे गए लोगों का एक भी परिवार का सदस्य गवाह नहीं बना है। साथ ही चिलखरी-देवरी का एक भी गवाह नहीं बना? था जरूर। लेकिन एक सोची समझी नीति के तहत सारा कुछ हुआ है। क्योंकि हमसे पहले कुछ लोग उस आरोप में ही पकड़ाये हैं। जबकि उन लोगों की पुलिस डायरी में किसी भी तरह से मेरा नाम नहीं जोड़ गया था। सभी को याद दिला दूं कि हमारी गिरफ्तारी के बाद नवम्बर में एक खबर छपी थी कि निमियाघाट थाना के ठेसाफूली गांव के श्यामलाल किस्कू उर्फ जीतन मरांडी के ऊपर लाखों के इनाम का घोषणा किया जाता है। इस तरह पुलिस द्वारा घोषणा करने का मतलब ही है कि उस जीतन मरांडी के नाम पर मैं शिकार हुआ हूं जो मानवाधिकार का घोर उल्लंघन है।
अभी तक मेरे ऊपर लगाए गए फर्जी मुकदमा आप खुद रेखांकित कर सकते हैं। गांव थाना कांड संख्या 56/99 और 54/2000 के लिये प्रोडक्शन मेरे ऊपर लग चुका है। उसके पुलिस डायरी में भी बस उसी पुराने धारा में ही लिखा गया है। दो जीतन मरांडी का नाम दर्शाया गया है। जबकि दोनों कांड के कई अभियुक्तों की पुलिस डायरी में ऐसा नहीं था और वे सभी बरी हो चुके हैं। दूसरी ओर पीरटांड़ थाना कांड संख्या 42/08 का फर्जी मुकदमा का प्रोडक्शन सटा। जबकि इस कांड के दौरान मैं जेल में हंूं। फिर तिसरी थाना कांड संख्या 44/03 और 9/04 फर्जी मुकदमा का प्रोडक्शन सटा। जबकि तिसरी 44/03 के समय मैं आदर्श केन्द्रीय कारा, बेऊर, पटना, बिहार में बन्द था। और 9/04 के समय अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मधुबन में था। इसके बाद भी मुझको नामजद अभियुक्त कैसे बनाया गया है? यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है। और यही फर्जी मुकदमा की असलियत है।
साजिश की असलियत
जेवीएम एवं गिरिडीह पुलिस के साजिशपूर्ण रवैया का उस समय पर्दाफास हुआ जब दिनांक 24 मार्च, 09 को दवेरी थाना कांड संख्या 167/07 अर्थात् एस.टी.एन. 170/08 में पेशी के लिए सभी मियादी न्यायालय पहुंचे थे। सेशन हाजत में सभी बन्दी लोग बैठे हुए थे। इस बीच गिरिडीह टाउन थाना के प्रभारी आये और मुझे बुलाया एवं नाम वगैरह पूछा। इसके बाद मैंने भी उनका परिचय पुछा तो उन्होंने अपने को टाउन थाना का प्रभारी बताया। प्रभारी का कोई पहचान नहीं था सादे पोषाक में थे। वे कुछ देर के बाद वहां से निकल गए। कुछ देर के बाद बाकी मियादी को छोड़ केवल कोर्ट में पेशी के लिए मुझको निकाला गया। इस संबंध में सिपाही से पूछन्े पर उसने कहा ‘सवाल मत करो। चलो।’ जैसे ही मैं सेसन हाजात से बाहर निकला वैसे ही बाहर खड़े लोगों के बीच टाउन थाना प्रभारी भी थे। उन्होंने सभी लोगों को मेरे तरफ इशारे करते हुए बोला यही है जीतन मरांडी, पहचानो। इसके बाद मेरे पीछे-पीछे सभी लोग माननीय न्यायाधीश महोदय मो. कासीम अंसारी अदालत तक गये। फिर वहां पर भी मुझको गौर से दिखाया गया। कोर्ट में दस्तखत किये बगैर पेशकार ने वापस लौटाना चाहा तब मैंने थोड़ी ऊंची आवाज में पेशकार से पूछा कि तब मुझे क्यों लाया गया था? जिसके चलते माननीय जज माहोदय को चेतावनी भी मुझे सुननी पड़ी। इसके बाद मैंने अपनी गलती को स्वीकारते हुए माफी मांगी। तब तक बाकी मियादी लोग भी कोर्ट पहुंचे। दस्तखत कर पुनः सेसन हाजत वापस आये। सेसन हाजत आने के बाद मेरे मियादी लोगों ने मुझे बताया कि वहां खड़े वे सभी लोग एस.टी.एन. 170/08 में बने गवाह थे। क्योंकि कुछ मियादी के पड़ोसी हैं इनमें से कुछ गवाह। इससे पता चलता है कि पुलिस और झावियों के बीच क्या संबंध एवं साजिश है। गैर कानूनी तरीके से गवाहों से पहचान करा देना कम अन्यायपूर्ण नहीं है। इस संबंध में मैं लिखित आवेदन कोर्ट एवं अन्य संबंधित विभाग को भी दे चुका हूं।
साजिश षड्यंत्र क्या सच है? हां! दिनांक 1 अप्रैल 09 को उसी कांड में ही गवाही था। गवाही देने मोती साव एवं सुबेध साव नामक गवाह आये थे। मोती साव ने अपने बयान में मुझको निशाना करते हुए कहा कि गोली चलाने वाले में एक जीतन मरांडी को पहचानता हूं। उस घटना में यही जीतन मरांडी भी शामिल था। इसी से प्रमाणित होता है कि गिरीडीह पुलिस और जेवीएम का क्या साजिश है! जबकि मैं उस घटना में किसी भी तरह से शामिल नहीं हूं और न तिसरी, गावां में देवरी इलाके में कभी गया हूं। हालांकि मेंरे अधिवक्ता द्वारा जिरह बहस के जरिए सही तत्व सामने आ चुका है।
ज्ञात हो कि मैं शुरुआती दौर से अपने ऊपर हो रहे पुलिस प्रताड़ना का विरोध करते आया हूं। साथ ही अपने पक्ष को स्पष्ट रूप मंे विभिन्न माध्यमों से पेश कर चुका हूं। जेल से मैंने अपने ऊपर हो रहे लगातार पुलिस प्रताड़ना एवं फर्जी मुकदमा के संबंध में कई बार लिखित आवेदन जेल अधीक्षक द्वारा माननीय मुख् न्यायिक दण्डाधिकारी महोदय व्यवहार न्यायालय, गिरिडीह, जिला जज, जिला उपायुक्त पुलिस अधीक्षक जेल आई.जी. मुख्य न्यायाधीश हाई कोर्ट, रांची तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली तक प्रेषित कर चुका हूं। लेकिन दुःख के साथ मुझे कहना पड़ रहा है कि आज तक किसी भी विभाग द्वारा उचित कदम नहीं उठाया गया है। सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया से ही मेरा कार्य आगे बढ़ रहा है जिसमें काफी अधिक धन की जरूरत होती है और इतनी बड़ी रकम को ऐसी स्थिति में व्यवस्था कर पाने में हमारा परिवार असमर्थ है ऐसी स्थिति में मैं न्यायिक प्रक्रिया के द्वारा जमानत पर बाहर नहीं निकल सकता हूं। मुझे ढेर सारी मदद की जरूरत है। मैं न्यायालय से पूरी उम्मीद करता हूं कि वह मेरे ऊपर लगाए गए आरोप को गहराई से देखते हुए निष्पक्ष ढंग से न्यायोचित फैसला सुनिश्चित करेगी।
मैं तमाम प्रतिशील बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों, साहित्यकारों, संास्कृतिक कर्मियों, सामाजिक कार्यकत्र्ताओं, मानवाधिकार संगठनों, जन संगठनों, मजदूर किसानों, छात्र नौजवानों, वृहत नागरिकों, शुभचिन्तकों तथा आम जनता से अपील करता हूं कि मेरे ऊपर लगाए गए संगीन आरोप से मुझे निजात दिलाने हेतु आगे आवें। और हर तरह से हमें मदद करें ताकि मैं बाहर जा सकूं और जन संस्कृति तथा अदिवासियों की परम्परा व लोक संस्कृति की रक्षा करते हुए इसे विकसित करने के काम में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकूं।


झारखण्डी जोहर के साथ
आज्ञाकारी
जीतन मारांडी
08.04.2009